हमारा देश विविधताओं का देश है और उतनी ही विविध है, यहां की भाषा और बोली. इसी पर एक कहावत है, जो काफ़ी मशहूर है, ‘कोस-कोस पर बदले पानी, कोस-कोस पर वाणी’. इस एक वाक्य में ही भारत की भाषा और बोली, दोनों की विविधता समाई है. एक तरह से देखा जाए, तो हमारे देश में राज्यों की व्यवस्था भी भाषा आधारित ही है. किसी क्षेत्र में बोली जाने वाली भाषा के आधार पर ही राज्यों की सीमाएं निर्धारित की गईं. इसका यह मतलब बिल्कुल नहीं है कि किसी राज्य में एक ही भाषा बोली जाती है. उदाहरण के लिए, अगर गुजरात की बात करें, तो यहां की राजकीय भाषा गुजराती है, लेकिन इसके अलग-अलग क्षेत्रों में अलग-अलग बोलियां बोली जाती हैं. जैसे कि सौराष्ट्र में काठियावाड़ी और यहां के आदिवासी भिली भाषा बोलते हैं. सिंधी, मराठी और कई दूसरी भाषाएं भी यहां बोली जाती हैं. ठीक इसी तरह दूसरे राज्यों में भी राजकीय भाषा के अलावा, अलग-अलग क्षेत्रों में अलग-अलग भाषाएं बोली जाती हैं.
क्षेत्रीय ऑडियंस के लिए लोकलाइज़ेशन क्यों है ज़रूरी?
भारत सबसे तेज़ी से बढ़ती अर्थव्यवस्था है और वैश्विक वृद्धि में हमारा योगदान करीब 15 प्रतिशत है. अगर आपका कोई कारोबार है और आप भारतीय बाज़ार में ज़्यादा से ज़्यादा मुनाफ़ा पाना चाहते हैं, तो आपको अपने कारोबार के कॉन्टेंट को भारतीय भाषाओं के हिसाब से लोकलाइज़ करना होगा. हाल ही में सामने आई केपीएमजी और गूगल रिपोर्ट में, यह अनुमान लगाया गया है कि 2021 तक हमारे देश में, ऐसे लोगों की संख्या 536 मिलियन (53,60,00000) हो जाएगी जो किसी भारतीय भाषा में इंटरनेट पर कुछ ढूंढते हैं. दूसरे शब्दों में कहें, तो हम टारगेट ऑडियंस के ऐसे बड़े तबके की बात कर रहे हैं जो कि इंटरनेट पर अपनी भाषा में कॉन्टेंट देखना चाहता है.
क्या आप इतनी बड़ी ऑडियंस को अनदेखा करना चाहेंगे?
जवाब होगा नहीं. हालांकि, यह भी सच है कि ज़्यादातर भारतीय अंग्रेज़ी भाषा की अहमियत समझते हैं और उसे सीखने-समझने के लिए खूब मेहनत भी करते हैं. यह एक तरह से उनके पेशे की ज़रूरत भी हो सकती है, लेकिन यही लोग जब खुद इंटरनेट पर किसी सेवा और उत्पाद के बारे में जानकारी ढूंढते हैं, तो वे सारी जानकारी अपनी भाषा में देखना पसंद करते हैं.
क्षेत्रीय ऑडियंस पर उनकी भाषा का ही जादू चलता है
भारतीय भाषाओं में लोकलाइज़ेशन का एक मकसद यह भी है कि मैसेज का उद्देश्य, टारगेट ऑडियंस तक बिल्कुल साफ़-साफ़ पहुंचे. उदाहरण के लिए, अगर हम अपने ब्रैंड के बारे में बताने के लिए किसी अंग्रेज़ी स्लोगन का इस्तेमाल करते हैं, तो यह अंग्रेज़ी बोलने वाले देशों में तो लोगों को बहुत बढ़िया से समझ आएगा और वे इसे पसंद करेंगे. लेकिन, अगर इसी स्लोगन से हम भारत के कुछ राज्यों, जैसे कि तमिलनाडु के लोगों को टारगेट करें, तो शायद यह उतना कारगर साबित न हो. ऐसे में लोकलाइज़ेशन का रोल महत्वपूर्ण हो जाता है, लेकिन अंग्रेज़ी स्लोगन को तमिल में ट्रांसलेट करने से बात नहीं बनेगी. उस स्लोगन को वहां की बोली और कल्चर के हिसाब से डिज़ाइन करना होगा, तब जाकर लोग आपके उत्पाद से जुड़ पाएंगे. सबसे बड़ी बात, जो आपके कारोबार की सफलता में अहम भूमिका निभाती है, वह है आपकी सेवा और उत्पाद में लोगों का भरोसा. यह भरोसा तभी आता है, जब टारगेट ऑडियंस को यह बात सही तरह से समझ में आए कि आपका कारोबार है क्या, इसके उत्पाद और सेवाओं से उन्हें क्या फ़ायदे मिलेंगे और यूएसपी क्या है. यह सारी जानकारी उन्हें बेहतर तरीके से उनकी भाषा में ही समझाई जा सकती है और यहीं लोकलाइज़ेशन का रोल सबसे अहम हो जाता है.
क्या ब्रैंड क्षेत्रीय ऑडियंस के लिए लोकलाइज़ कर रहे हैं?
जबाव है, हां. कुछ ऐसे उदाहरण हैं, जो बताते हैं कि बड़े-बड़े मल्टीनैशनल ब्रैंड ग्राहकों को लुभाने के लिए लोकलाइज़ेशन की पावर का इस्तेमाल कर रहे हैं:
– पेप्सीको, लोकल ग्राहकों को लुभाने के लिए, क्षेत्रीय भाषाओं में अपने उत्पाद की लेबलिंग कर रहा है.
– कोका कोला ने अपने प्रॉडक्ट पोर्टफ़ोलियो का दो-तिहाई हिस्सा लोकलाइज़ करने का प्लान तैयार किया है.
– अमेज़न प्राइम वीडियो जैसी वीडियो स्ट्रीम करने वाली सेवा ने अपने यूज़र इंटरफे़स में क्षेत्रीय भाषाओं को भी शामिल किया है.
ये तो कुछ उादहरण हैं, जो बताते हैं कि बड़े-बड़े ब्रैंड अपने उत्पाद की जानकारी को क्षेत्रीय ऑडियंस के लिए डिज़ाइन करने पर फ़ोकस कर रहे हैं.
क्षेत्रीय ऑडियंस को टारगेट करने के लिए लोकलाइज़ेशन है ज़रूरी
इन सभी तथ्यों और बातों को गौर से समझने के बाद यह साफ़ हो जाता है कि अगर आप भारतीय बाज़ार का ज़्यादा से ज़्यादा फ़ायदा पाना चाहते हैं, तो आप लोकलाइज़ेशन को अनदेखा नहीं कर सकते. ऐसा इसलिए, क्योंकि क्षेत्रीय ऑडियंस अपनी भाषा में ही कॉन्टेंट देखना पसंद करती है. भाषा से जुड़ाव भी एक बड़ी वजह है कि लोग उस उत्पाद या सेवा में दिलचस्पी दिखाएं. इसलिए, अगर बाज़ार में आने की तैयारी करनी है पूरी, तो लोकलाइज़ेशन है ज़रूरी!
April 26, 2021 — magnon