इंटरनेट के इस युग में दुनिया तेज़ी से सिमटती जा रही है. दुनिया के अलग-अलग कोनों में बैठे लोग एक-दूसरे से कुछ सेकंड में ही जुड़कर बातचीत कर सकते हैं, लेक्चर दे सकते हैं, और भी बहुत कुछ ऐसा कर सकते हैं जिसे एक ज़माने में बस कल्पना ही माना जाता था, लेकिन यह कैसे संभव हुआ? सिर्फ़ इंटरनेट से? तो जवाब है, नहीं. भले ही, इंटरनेट लोगों को करीब लेकर आया हो, लेकिन लोगों को जोड़ने का काम हमेशा भाषा ने किया है. अगर दो लोग एक-दूसरे के सामने खड़े हों, लेकिन उन्हें एक-दूसरे की भाषा समझ न आती हो, तो वे बातचीत कैसे कर पाएंगे? इसलिए, ज़रूरी है कि वे एक-दूसरे की भाषा समझें. बात जब भाषा की हो, तो सिर्फ़ शब्द मायने नहीं रखते, बल्कि भावनाओं की भी भूमिका होती है. शब्दों और भावनाओं का यही मेल, दुनिया को जोड़ने में एक पुल की तरह काम करता है और इसे ही लोकलाइज़ेशन कहा जाता है.
सोचिए, अमेरिका की किसी कंपनी ने भारत के लिए अपना कोई प्रॉडक्ट लॉन्च किया है और उसका प्रचार भारत में करना है. कंपनी ने भारत में बोली जाने वाली अलग-अलग भाषाओं में अनुवाद करके अपने विज्ञापन को पेश किया, लेकिन इसकी टैगलाइन भारतीय बाज़ार के हिसाब से फ़िट नहीं है, प्रॉडक्ट की कीमतें रुपयों के बजाय डॉलर में बताई गई हैं. विज्ञापन में हॉलीवुड का कोई ऐक्टर है जिसे भारत में एक बड़ी आबादी जानती भी नहीं, विज़ुअल भारत के बजाय अमेरिका के दिखाए गए हैं. ऐसे में विज्ञापन की भाषा तो भारत में बोली जाने वाली कोई भाषा होगी, लेकिन उसमें वे भावनाएं नहीं होंगी जो प्रॉडक्ट खरीदने के लिए किसी ग्राहक को प्रेरित कर सकें.
भाषा और भावनाओं के इसी पुल को बनाने का काम लोकलाइज़ेशन एजेंसी का है. ऐसी एजेंसी और इन एजेंसियों में काम करने वाले भाषा के जानकार, इस पुल के ऑर्किटेक्ट हैं. ये सिर्फ़ शब्दों को बयां नहीं करते, बल्कि उनके पीछे की कहानी भी बताते हैं. जैसे कुम्हार चाक पर मिट्टी को रखकर बर्तन बनाता है वैसे ही ये एजेंसियां कल्चर के हिसाब से शब्दों को ढालकर लोगों तक मैसेज पहुंचाती हैं.
लोकलाइज़ेशन एक आर्ट है और लोकलाइज़ेशन एजेंसियां इस आर्ट के लगभग हर पहलू से वाकिफ़ होती हैं:
- शब्दों को कल्चर के ताने-बाने में बुनना: लोगों के बीच किसी मैसेज को पहुंचाने के लिए ज़रूरी है कि उसे उसके कल्चर के हिसाब से पेश किया जाए. इसलिए, आम तौर पर लोकलाइज़ेशन एजेंसियां सिर्फ़ शब्दों को ट्रांसलेट नहीं करती हैं, बल्कि उनके पीछे छिपे मैसेज को समझकर उसका ट्रांसलेशन किया जाता है जिसे हिन्दी में हम भावानुवाद कह सकते हैं. क्या आपको पता है कि किसी छोटे से सिंबल का भी अलग-अलग देशों में अलग-अलग मतलब हो सकता है? ट्रांसलेशन करते समय इसका बखूबी ध्यान रखा जाता है.
- शब्दों से खेलते हुए इमेज गढ़ना: लोकलाइज़ करते वक्त परफ़ेक्ट शब्दों और वाक्यों का इस्तेमाल किया जाता है. मुहावरों, लोकोक्तियों और प्रचलित वाक्यांशों का इस्तेमाल इस तरह किया जाता है कि ओरिजनल मैसेज पढ़ने, सुनने या देखने वाले व्यक्ति तक सटीक तरह से पहुंच सके. साथ ही, अलग-अलग भाषाओं और इलाकों के हिसाब से ट्रांसलेट करते वक्त अलग-अलग टोन और बोलियों का इस्तेमाल किया जाता है. ऐसी एजेंसियों की कोशिश रहती है कि शब्द सिर्फ़ लोगों से बातें न करें, बल्कि संगीत की तरह उनके दिलो-दिमाग पर छा जाएं.
- मामला टेक्निकल है, तो क्या: सच कहा जाए, तो किसी भी तरह के कॉन्टेंट को लोकलाइज़ किया जाता है, सब कुछ मतलब सब कुछ. चाहे वह किसी वेबसाइट का लेआउट हो, मल्टीमीडिया कॉन्टेंट हो या कोई यूआई इंटरफ़ेस. आपकी डिजिटल प्रेजेंस को इतना आकर्षक बनाया जा सकता है कि वह लोगों के दिलो-दिमाग में बस जाए और वे आपके प्रॉडक्ट की ओर खिंचे चले आएं.
- स्क्रीन पर, लोगों की अपनी दुनिया: आज के समय में विज़ुअल, अपनी बात लोगों तक पहुंचाने का सबसे अच्छा साधन है, लेकिन इसमें भी परफ़ेक्शन की ज़रूरत होती है. इमेज, वीडियो, और ऑडियो को लोगों के बीच उनके ही अंदाज़ में ले जाया जाता है. एक ही सिंबल और रंग के अलग-अलग देशों में अलग-अलग मतलब हो सकते हैं. ऐसे में काफ़ी रिसर्च करनी पड़ती है और हर एक चीज़ को ऑडियंस के हिसाब से पेश किया जाता है जिसे देखते ही उनकी तलाश पूरी हो जाती है.
- एआई के आगे जहां और भी है: आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस और इंटरनेट ऑफ़ थिंग्स के बढ़ते इस्तेमाल के बीच यह सवाल बार-बार हर किसी के मन में उठता होगा है कि जब एआई है तो इंसानों की ज़रूरत ही क्या? तो इसका जवाब है, ज़रूरत है, क्योंकि जो भावनाएं एक इंसान महसूस कर सकता है वह एआई नहीं कर सकता. बेशक एआई बेहद जल्दी और एक साथ ज़्यादा शब्दों का ट्रांसलेशन कर सकता है, लेकिन अगर बात शब्दों के पीछे छिपे किसी मैसेज को समझने की हो तो आज भी इंसानों को कोई रिप्लेस नहीं कर सकता. हमने पहले ही लोगों के कल्चर के हिसाब से ट्रांसलेशन की बात की है तो एआई के लिए इसे समझना आज भी मुश्किल है. ऐसे में हम वह कर सकते हैं जो एआई नहीं कर सकता. किसी ट्रांसलेशन को “ह्यूमन टच” देकर उसे लोगों के लिए खास बना देना ही हमें एआई से अलग बना देता है.
क्या है हमारा मिशन?
हमारा मिशन है कि हम आपके ब्रांड को लोगों के बीच इतने अपनेपन से ले जाएं कि वे न सिर्फ़ खुद इसे अपना लें, बल्कि और लोगों के बीच इसको प्रमोट भी करने लगें. हमारा मानना है कि हर ब्रांड और हर कहानी लोगों के बीच पहुंचे, उसके मोटिव को लोग जानें और पसंद करें. इस काम में भाषा और इलाके की सीमाओं का बंधन नहीं होना चाहिए. इसलिए, हम बस एक सर्विस ऑफ़र नहीं कर रहे, बल्कि आपके ब्रांड और आपकी कहानी के लिए सफलता का एक ऐसा रास्ता ऑफ़र कर रहे हैं जहां से उसे दुनिया भर में एक पहचान मिल सके. हमें मौका दें कि हर भाषा और जुबान में आपकी बात लोगों तक पहुंचा सकें जो आपके ब्रांड को सफलता के नए मुकाम पर खड़ा कर दे.
March 12, 2025 — magnon